तेरी सूरत ताकता है गुलाब

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बेरंगो बेनूर था गुलाब इससे पहले
ख़ुश्बू से भी इसका कोई वास्ता न था
तामीर भी गुलाब की ख़ूबसूरत न थी
हमने देखा है इसे
किताब के पन्नों में मुरझाया हुआ
दम टूटा हुआ, जिस्म बिखरा हुआ
मुझको याद है मेरे घर के आँगन में
एक बार तुमने गुलाब तोड़ा था
काँटा लगने से ख़ून के चंद क़तरे
तुम्हारी उँगलियों से टपककर
गुलाब पर बिखरे थे
शायद वही रंग तो गुलाबों में नज़र आता है
तु्म्हारे लहू की ख़ुश्बू गुलाबों में बसी है
शायद इसीलिये
तुम्हारी सूरत से मिलती है
गुलाब की सूरत।

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