सुकरात जैसी सीरत

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ज़िन्दगी मेरी तेरी हयात से मिलती है।
ये हक़ीक़त मुझे उस रात से मिलती है।

ज़हर पिलाती है हुक़ूमत जाम की सूरत
हमारी सीरत सुकरात से मिलती है।

ग़ुरबत के घिरौंदों में सिसकती-सी ज़िन्दगी
टपकते घरों में बरसात से मिलती है।

भूखे रहकर भूखों की तलाश रहती है
ये फक़ीरियत मुझको तेरी ज़ात से मिलती है।

राशन की क़तारों में जूझती है ज़िन्दगी
ये हक़ीक़त थालियों के हालात से मिलती है।

रचयिता - मुस्तफीज़ अली ख़ान
रिपोर्टर - स्टार न्यूज़, बरेली
तारीख़ - ३० अगस्त २०१०
मोबाइल - 09897531980, 09457372960