क़द के बराबर क़फ़न

1:44 PM Edit This 0 Comments »
सोई आँखों में मेरी याद जगाकर रखना
आँख तर रखना मगर सबसे छुपाकर रखना

यूँ बदगुमान हुआ दिल मेरे सीने से निकलकर
मेरे सीने में धड़कता हुआ कोई पत्थर रखना

यादे गर्दिश को समेटे हुए चलना लेकिन
दिल में सहमी हुई आहों का समन्दर रखना

मैंने उसको नहीं देखा है, न उसने मुझे
गर मिले दुनिया कहीं अक्स बनाकर रखना

तन ढको उनका जो ज़िन्दा हैं, बेलिबास भी हैं
तुम क़फ़न मेंरा मेरे क़द के बराबर रखना

आना है अगर लौटकर, तो लौट आओ मगर
अब मेरे बीच से हद एक बनाकर रखना


रचयिता - मुस्तफीज़ अली ख़ान, बरेली (उ०प्र०)

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