तेरे दर्शन

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ओ मेरे नयनों के सुनहरे दर्पण
हर पल मैं चाहूँ बस तेरे दर्शन

आकाश काला वो काली घटाएँ
चुराया है तेरे नयनों से अँजन

था सूर्य तो कई शतकों से
प्रकाश पाया किए तेरे दर्शन

झाँका बादलों से जब चन्द्रमा ने
हुआ तेरा रोगी देखके तन-मन

पुष्प कमल के खिलके नदी में
देखके डोले हैं तेरा रंजन

था विनोद प्रिय ये जीवन मेरा
आप न आये, दिल सूना आँगन

होती न दीपक में ऐसी ज्योति
होते यदि न तुम मेरे साजन

रचयिता - मुस्तफीज़ अली ख़ान, बरेली (उ०प्र०)

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