......सुना है दूर शहर से

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......सुना है
मेरे गाँव में
दूर शहर से
कुछ परिन्दे आये हैं
हंस के जैसे सफेद
झील-सी नीली आँखों वाले
कभी उड़ते हैं मेरे सहन के ऊपर
कभी बैठ जाते हैं नीम की शाखों पर
कभी ख़ामोश रहते हैं
शाम की तन्हाई तक
कभी उड़ने लगते हैं
सुबह के उजालों से
वह बात करते हैं
मेरे गुज़रे हुए सालों से
उनकी गर्दन में बँधे हैं
कुछ ख़ुतूत, कुछ ख़्वाब
पिछले हवालों के
शायद किसी के शहर छोड़ जाने का
वो पैग़ाम लाये हैं
......सुना है
मेरे गाँव में
दूर शहर से
कुछ परिन्दे आये हैं
रचयिता - मुस्तफीज़ अली ख़ान,

बरेली (उ०प्र०)

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